Wednesday, June 16, 2010

आस्था से खिलवाड़


राम राम जी .....जय श्री कृष्णा
कोई पुराणी बात तो है नहीं बस कल की ही बात है,हम घर पर थे,अरे भाई कल मंगलवार जो था।मंगल के दिन हम कोई काम नही करते क्योंकि इस दिन दिन हमारी प्रभु श्री राम जी से मीटिंग फिक्स है, बस हपते भर में सिर्फ एक दिन मंदिर जाते है,बाकि दिन हम अपने भक्तो के साथ मस्त रहते है जो अपनी शिकायते और कष्ट लेके हमारे सेलून आते है,तो जी हम घर पर थे और नहा धो कर अपने पूजा घर से निकले ही थे की हमारे एक मित्र घर पर पधारे,बढे अजीज मित्र है हमारे,उन्हें देख कर लगा जेसे सुदामा के घर कृष्ण पधारे हो,और उन्होंने बताया के सीता राम कुञ्ज बिहारी आश्रम में पिछले तीन दिनों से श्री मध् भागवत गीता का पाठ चल रहा है,हमें बहा चलना है यह सुन कर बढ़ी ख़ुशी हुई के पूजा घर से निकले थे और उनका बुलावा आ गया,और कुछ ही मिनटों में हम पहुँच गये हम आश्रम और वहा को जो नजारा था बो हम ब्यान नही कर सकते,हजारो की संख्या में श्रदालु प्रभु भक्ति में लीन थे,हम भी बैठ गये,कही खो से गये,प्रवचन कर्ता अपने प्रवचन में मस्त थे और श्रद्धालु प्रभु भक्ति में दोनों हाथ उठाकर श्री कृष्ण की जय जयकार कर रहे थे की इतने में प्रवचन कर्ता की दाई और पर लगी स्टेज पे कुछ नचनियां आकर नाचने लगी,हमें ऐसा लगा जेसे हम क्रिकेट के मैदान पर हो वंहा पर भी ऐसे ही तो होता है एक साइड में खिलाडी खेल रहे होते है दूसरी साइड में ये नचनियां [नचनियां नहीं समझते,, अब भैया अंग्रेजी में पता नही उन्हें क्या कहते है]बस दर्शको के मनोरंजन के लिए नाच रही होती है, यंहा का नजारा भी कुछ ऐसा ही था,बस थोड़ी प्रभु भक्ति थी और पहनावा थोडा सलीके का था,फिर भी मन थोडा सा भटक रहा था,अब करे भी तो क्या करे आखिर इंसान है ही गलतियों का पुतला,बढ़ी कोशिश की मन को रोकने की लेकिन नजर कभी कभार फिसलती रही,सारे मग्न हो गा नाच रहे थे,कुछ देर में एक बहुत सुन्दर नारी का आगवन हुआ तो प्रवचन कर्ता ने बताया की ये रुकमनी है और आज इनका विबाह किसी और से निशचित था लेकिन रुकमनी तन मन से भगवान् श्री कृष्ण जी को अपना पति मान चुकी है,और आज इन्होने कृष्ण जी को बुलाबा भेजा है की यंहा आओ और मुझे भगाकर ले जाओ मुझसे शादी कर लो नही तो मैं आत्मदाह कर लुंगी,प्रेम वश में कृष्ण जी ने रुकमनी जी का अपहरण किया और उनसे शादी की,इस वृतान्त के साथ साथ स्टेज पर साक्षात् श्री कृष्ण जी आते है और रुकमनी का हाथ पकड के उन्हें भगा ले जाते है, साक्षात् प्रभु जी के दर्शन पाकर हम तो धन्य हो गये ऐसा लग रहा था जेसे हम भी द्वारिका पूरी में बेठे हो,कथा के साथ ही स्टेज पर कृष्ण जी रुक्को को वरमाला पहनाते है बाकायदा ॐ मगलम भगवान् विष्णु आदि मंत्रो सहित दोनों की शादी होती है मंगल गान होता है और फिर कृष्ण जी के साथ रुकमनी दोनों आकर प्रवचन कर्ता के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेते है,जेसे की कन्यादान करने वाले पिता से वर वधु आशीर्वाद लेते है,,कथा तो बढ़ी आन्ददायक थी।बस थोडा सा रोष मन में पनप रहा था कुछ प्रश्न भी मन में आरहे थे की क्या कृष्ण रुकमनी बने लड़का लड़की सचमुच में शादी करेंगे,जिनकी शादी तो स्टेज पर पूरी हो चुकी थी,और क्या कथा के साथ लड़कियां नाचना जरुरी था बो भी एक स्पेशल स्टेज लगाकर,एक आम लड़का जो कृष्ण जी की वेशभूषा में था सभ श्रधालुओं ने और हमने भी उन्हें कृष्ण माना। उनके चरण स्पर्श किये क्या उन्हें प्रवचन कर्ता के चरण छूने चाहिए थे क्या भगवान् इतना छोटा हो गया है की वो एक आम इंसान के आगे शीश झुकाए।क्या कथा के साथ ये नोटंकी जरूरी थी,इससे अच्छा तो टीवी सीरियल ही होता है पहले ही साफ साफ लिखा होता है की सब पात्र और घटनाएं काल्पनिक है.फिर मन में आया की चलो छोडो मेरे प्रभु ने इसी हजारो लीलाए की है.शायद ये भी मेरे नटखट गोपाल की ही कोई लीला हो बस यही सोच हम बहा से हरे कृष्ण हरे कृष्ण करते घर आगये

4 comments:

  1. Well ...lovely g ....you are right. Very often people make these kind of blunders.

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  2. बहुत बहुत धन्यबाद चोहान साहेब .......चर्चा तो बहुत थी करने को पर समय के अभाव में कुछ ज्यादा लिख नही पाया ,,well thanku very much,,,

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  3. हा हा हा
    नचनियां भी समझते हैं और यह कृष्ण-सुदामा का मिलन भी रोचक था.
    चलिये सब कुछ स्वाभाविक ही था, इतना दिमाग नहीं लड़ाना चाहिये. इसमें इतना भी गलत नहीं था.
    वास्तविक कृष्णजी ने भी तो कितनों के पैर छुए होंगे.
    उनके भी कई गुरु थे और कई बड़े सगे-सम्बन्धी थे.
    और फिर गुरु (कथा-प्रवाचक) तो गोविन्द से भी बड़ा होता ही है. याद है (गुरु-गोविन्द दोउ खड़े....)
    अब बालाएं किसी थीं, जब देखा ही नहीं तो कैसे उन पर कुछ कहें !!
    मतलब कि उनके कपडे अगर सांस्कृतिक थे तो स्वांग और लीला के लिये तो यह सब आवश्यक ही है.
    वैसे आपकी सोच और विचार भी अपनी जगह पर प्रशंसनीय हैं.
    वैसे प्रसाद में कुछ मिला था या बस खाली हाथ ही लौटाया प्रवचनकर्ता ने.
    अगर खाली हाथ लौटाया तो यह तो गलत ही हुआ....हा हा हा

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  4. गुरु गोबिंद दोउ खड़े ,काके के लागु पाये
    बलिहारे गुरु आप पे गोविन्द दियो मिलाये,,,
    बहुत बढ़िया प्रभु धन्यवाद इस मार्गदर्शन के लिए, .... हम किसी मंदिर में जाये और लगर के बिना लौट आये ये तो हमारी शान के खिलाफ है,,,, हां हा हां हां

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