Thursday, June 24, 2010

किस्मत का फंडा ,,,,,

लौजी हाजिर है जनता की अदालत में एक नये ब्लॉग के[किस्मत का फंडा],,
एक समय की बात है एक गाँव में रामू नाम का एक गरीब रहता था, हर रोज़ भीख मांग कर अपना गुजारा करता था, बस ऐसे ही उम्र निकले जा रही थी,हर रोज़ ताने सुनने को मिलते थे,कोई कोई तो गलिय भी सुना देता था,जिनते मुहं उतनी बातें,कोई कहता की भगवान् ने हाथ पांव दिए है कोई काम करो यूँ भीख मांगते शर्म नही आती,बस ऐसे ही चल रहा था,,, एक दिन केलाश पर्वत पर बेठे शिव पार्वती की नजर भीख मांगते हुए रामू पर पढ़ी, माता पार्वती ने भोले नाथ से कहा की उन्हें रामू की सहायता करनी चाहिए,भोले नाथ ने बहुत समझाया की रामू की किस्मत में भीख मांगना ही लिखा है,हम उसकी कोई सहायता नही कर सकते,लेकिन माता नही मानी तो भोले नाथ ने एक थेली में सोने के कुछ सिक्के और कुछ हीरे मोती भरकर उस रस्ते में रख दिए जंहा से रामू गुजरता था,और और उधर रामू जो रोज़ के तानो से तंग आया हुआ था, आज सोचता है की लोग कहते है की भगवान् ने हाथ पांव आँखे दे रखी, कुछ काम कर लिया करो, तो आज रामू ने अपनी दोनों आँखे फोड़ ली और निकल पढ़ा अपने रास्ते पर, थोडा आगे चलने पर उसी थेली से पांव की ठोकर लगी तो रामू ने पांव की ठोकर से उस माया की थेली को अपने रस्ते से हटा दिया ये कहते हुए की लोग कूड़ा कटकट भी रस्ते में ही फेंक देते है और रामू निकल पढ़ा गाँव की और,,,तब भगवान् भोले नाथ बोले माता से की देख ले भाग्यवान तेरी माया की थेली को उसने कूड़ा करकट कह कर पांव की ठोकर मार दी ,,,माता कहने लगी,भगवन ये कस्मत का फंडा अपनी समझ परे है,,,,,,

Sunday, June 20, 2010

घंटा महादेव का ,,,,,,,,

अरे अरे बुरा मत सोचिये जी पहले पूरा पढ़ तो लीजिये ,
मैं ये जानता हूँ हम हर बात के दो मतलब निकलने में माहिर है.पर यंहा पर मेरा विचार नेक और शुद्ध है,,,
तो बात यह है की एक बार चोर अपने घर में बैठा था और उसकी बीबी उसे डांट फटकार रही थी,कह रही थी की कोई काम काज करलो कब तक यूँ घर बेठे रहोगे, तो चोर जी कहते है की आजकल चोकसी इतनी बढ़ गयी है के चोरी करना आसन नही रह गया, और हमें तो एक ही काम आता है अब बोझा भार तो हमसे डोया नही जायेगा,आज देखते है कुछ, बस रात के होते ही चोर जी निकल पढ़ते है गाँव की तरफ, घर घर घूमते जनाव पहुँच गये एक शिवालय [शिव मंदिर ]में वंहा भी कुछ हाथ नही लगा,क्योंकि वंहा गल्ले पर पहले ही पंडित जी अपना हाथ साफ़ कर चुके थे,जब कुछ हाथ नही लगा तो चोर जी की नजर पढ़ती है,शिवलिंग के ऊपर लटक रहे घंटे पर, चोर जी ने सोचा की दो चार दिन की रोटी का जुगाड़ तो हो ही जायेगा बस यही सोच कर वो शिवलिंग पे चढ़ गया और लगा घंटे [बढ़ी सी टल्ली]को खोलने, लाख कोशिश करने पर भी वो घंटा नही खुला, और उधर केलाश पर्वत पर बेठे शिव मुस्कुरारहे थे और संग में बेठी माता पार्वती जी गुस्से में कह रही थी की आपके मंदिर में चोरी हो रही है और आप हंस रहे है,भोले बावा तो नाम के अनुसार भोले थे, वो बोले कुछ नही है बस एक बच्चा शरारत कर रहा है और उसकी शरारत से मुझे आनद हो रहा है,उसने मुझे जो ख़ुशी दी है उसके बदले उसे कुछ देना चाहिए मैं अभी उससे मिलके आता हूँ,रो शिव जी पहुँच गये अपने मंदिर में वंहा पहुँच कर चोर जी से बोले अरे भाई क्या कर रहे हो,चोर जी तो एकदम सुन्न हो गये सोचा की आज फिर मार पढेगी फिर होसला सा करके बोले,देख नही रहे का घंटे को उतार रहे है ससुरा खुल ही नही रहा पर भाई तुम कौन हो और ये क्या हाल बना रखा है सारे तन पे स्वाह मल राखी है जीते जागते भुत लग रहे हो,जाओ भाई घर जाके नहा धो के जरा डंग के कप्धे पहनो किसी बच्चे ने देख लिया तो डर जायेगा,भोले नाथ बोले भाई रुक जा मैं इस घर का मालिक हूँ मैं भगवान् शिव हूँ मैं तुम्हे वरदान देने आया हूँ जो मांगोगे वो मिलेगा, चोर जी बोले यार मैं तो हेरान हूँ की तुम जेसो का भी घर होता है दूसरी बात यह है की अगर ये घर तुम्हारा है तो वजाए मुझे मारने के कुछ देने आये हो वो क्या कह रहे थे तुम क्या देने वाले हो, अरे भाई हम तुम्हे वरदान देने आये है जो मर्जी मांग लो,चोर जी बोले भाई तुम हम पे ये अहसान क्यों कर रहे हो जबकि मैं तो तुम्हारे घर में चोरी करने आया हूँ,भोले नाथ बोले भाई आज तुमने जाने अनजाने में मेरी बढ़ी सेवा की है और उस सेवा से मैं बहुत खुश हूँ, चोर जी ,,मैंने तुम्हारी सेवा कब की है, भोले नाथ जी बोले भाई तुमने रावन का नाम सुना है उसने दस युग तक मेरी भक्ति की और हर बार अपना शीश मेरे शिवलिंग पे चढ़ाया लिकिन तुमने तो कमाल कर दिया आज तुम ने पूरा शारीर ही मेरे शिवलिंग पे चदा दिया इस लिए मैं तुमसे खुश हूँ, मांगो क्या मांगते हो,चोर जी बोले अरे भईया तुम्हारे पास है ही क्या देने को, अछ्छा कुछ देना ही चाहते हो तो ये घंटा उतार के देदो, भोले नाथ जी बोले भाई कुछ और मांग लो जो तम्हारे बच्चे आराम से घर बैठ खायेंगे ,चोर जी बोले भाई क्यों समय खराव कर रहे हो मुझे तो बस यही चाहिए कुछ कर सकते हो तो ठीक वर्ना जाओ यंहा से, भोले नाथ जी बोले ठीक है जो तुम्हारी इच्छा भोले नाथ ने वो घंटा उतार कर चोर जी को दिया और बोले जाओ भाई आज से तुम्हारी किस्मत में यही महादेव का घंटा होगा,,,,,,और भोले नाथ जी अपने केलाश को वापिस आगये और चोर जी महादेव का घंटा लेके घर आगये,,,,,,, अब मैं भी घर जा रहा हूँ कल आके टिप्पणियाँ पढूंगा ,,धन्यवाद

घंटा महादेव का,,,,,,,,,


अरे अरे बुरा मत सोचिये जी पहले पूरा पढ़ तो लीजिये,
जानता हूँ के हर बात के दो मतलब निकलते है लेकिन मेरा मतलब पूरी तरह नेक और शुद्ध है;; लोजी काफी समय पहले की बात है एक बार एक चोर अपने घर में बैठा था. उसकी बीबी उसे डांट फटकार रही थी, कह रही थी की कोई काम काज करलो सारा दिन पढ़े रहते हो सारी रात गाँव में भटकते रहते हो पल्ले कुछ पढता नही उल्टा मार खा के आजाते हो.छो कहता है आरी भाग्यवान आजकल चोकसी इतनी बढ़ गयी है की चोरी करना कोई आसन नही रह गया, और दूसरा कोई काम हम कर नही सकते,अब ये बोझा भार तो हमसे ड़ोया नही जाता देखते है आज रात कुछ करते है.लोजी चोर जी रात को निकल पढ़ते है रात को चोरी के लिए,और घुस जाते है एक शिव मंदिर में.तो जी गल्ला तो पहले ही पंडित जी ख़ाली कर चुके थे, मिला तो बस भगवान् जी की मूर्तियाँ और कुछ फोटो,जब कुछ नही मिला तो नजर पढ़ी शिवलिंग के काफी ऊपर लटक रहे घंटे पर लोजी चोर जी ने सोच लिया की एस ह्गंते को बेच कर दो चार दिन की रोटी का जुगाड़ तो हो ही जायेगा,यही सोच कर शिवलिंग क्र ऊपर चढ़ जाता है और घंटे को खोलने की कोशिश करता है,काफी समय हो गया चोर जी पसीने पसीने हो गये लेकिन ह्गंता नही खुला, और उधर शिव भोले नाथ माता पार्वती संग बेठे मुस्कुरा रहे थे और माता जी को गुस्सा आ रहा था,की चोर हमरे मंदिर में चोरी कर रहे है और भोले नाथ हंस रहे है,तो भोले नाथ कहते है,हे देवी ये भक्त सजा का नही इनाम का हक़ दार है,जब सारी दुनिया आराम से सो रही है उस समय भी ये मेहनत कर रहा है,देखो मैं उसे इसका इनाम देके आता हूँ, और भोले नाथ पहुच गये अपने मंदिर में और चोर से पूछा भाई ये क्या कर रहे हो,चोर एक बार तो सुन्न पढ़ गया फिर दलेरी सी दिखा कर बोला, देके नही हो का घंटा उतार रहे है पर ये khulata ही नही है,और tum है

Friday, June 18, 2010

बढ़ा कौन


वैसे मुझे ये तो नही पता की ये बात कितनी पुरानी है,लेकिन एक समय की बात है जब दूध और पानी आपस में लढ़ रहे थे,बहस का मुद्दा था की दोनों में बढ़ा कौन,है तो दोनों ही पक्के मित्र,बस छोटी सी बात को लेकर झगड़ा हो गया,,अब दोनों अपनी समस्या लेकर भगवान् जी के पास गये और दोनों ने अपना पक्ष उनके सामने रखा,भगवन जी भी परेशान हो गये सोचने लगे की दोनों ही अपनी जगह महान है, जब उन्हें कोई हल नजर नहीं आया तो उन्होंने दूध से पूछा की तुम ही बताओ तुम बढे केसे हुए.तो दूध ने अपना पक्ष रखा.प्रभु मैं बढ़ा हूँ क्योंकि मेरे बिना पानी की कोई ओकात नही है,पानी जब मुझमे मिल जाता है,तो मैं तो मैं ही रहता हूँ ये ख़त्म हो जाता है,और प्रभु जब मैं पानी में मिल जाऊ तब भी ये ख़त्म हो जाता है फिर बन जाती है कच्ची लस्सी वो भी मेरा ही अंग है,अब प्रभु जी पानी से पूछते है हाँ भाई है कोई जवाव दूध के प्रश्नों का,पानी कहता है प्रभु जी जब मैं इसमे मिला तब ही दूध बढ़ा हुआ पहले तो छोटा ही था,और जब कच्ची लस्सी की जरूरत थी तब भी मैं ही ज्यादा था ये तो थोडा सा था,फिर मैं ही बढ़ा हुआ,प्रभु जी बोले यार बात तो तुम्हारी भी जायज है,तो दूध भैया अब क्या बोलते हो,दूध बोला वैसे तो पानी ने पूरी यारी निभाई लेकिन जब मुझे उबाला गया तो इसने अपने छोटेपन का परिणाम दिया और हलके से सेंक से डर कर ये भाग गया ,प्रभु जी कुछ बोलते इससे पहले पानी बोल पढ़ा,प्रभुजी जब दूध को गर्म किया तो मैंने सारा सेंक अपने ऊपर ले लिया मैं तो जल कर भांप बनके ख़त्म हो गया लेकिन अपने यार को कुछ नहीं होने दिया वो तो दूध का दूध ही रहा न,बस इतना सुन कर प्रभु जी खढे हो बोले अरे भाईओ तुम दोनों की यारी के आगे तो मैं छोटा पद गया जाओ यार अपनी अपनी जगह तुम दोनों ही महान हो,,,,,,,,,,,

Wednesday, June 16, 2010

आस्था से खिलवाड़


राम राम जी .....जय श्री कृष्णा
कोई पुराणी बात तो है नहीं बस कल की ही बात है,हम घर पर थे,अरे भाई कल मंगलवार जो था।मंगल के दिन हम कोई काम नही करते क्योंकि इस दिन दिन हमारी प्रभु श्री राम जी से मीटिंग फिक्स है, बस हपते भर में सिर्फ एक दिन मंदिर जाते है,बाकि दिन हम अपने भक्तो के साथ मस्त रहते है जो अपनी शिकायते और कष्ट लेके हमारे सेलून आते है,तो जी हम घर पर थे और नहा धो कर अपने पूजा घर से निकले ही थे की हमारे एक मित्र घर पर पधारे,बढे अजीज मित्र है हमारे,उन्हें देख कर लगा जेसे सुदामा के घर कृष्ण पधारे हो,और उन्होंने बताया के सीता राम कुञ्ज बिहारी आश्रम में पिछले तीन दिनों से श्री मध् भागवत गीता का पाठ चल रहा है,हमें बहा चलना है यह सुन कर बढ़ी ख़ुशी हुई के पूजा घर से निकले थे और उनका बुलावा आ गया,और कुछ ही मिनटों में हम पहुँच गये हम आश्रम और वहा को जो नजारा था बो हम ब्यान नही कर सकते,हजारो की संख्या में श्रदालु प्रभु भक्ति में लीन थे,हम भी बैठ गये,कही खो से गये,प्रवचन कर्ता अपने प्रवचन में मस्त थे और श्रद्धालु प्रभु भक्ति में दोनों हाथ उठाकर श्री कृष्ण की जय जयकार कर रहे थे की इतने में प्रवचन कर्ता की दाई और पर लगी स्टेज पे कुछ नचनियां आकर नाचने लगी,हमें ऐसा लगा जेसे हम क्रिकेट के मैदान पर हो वंहा पर भी ऐसे ही तो होता है एक साइड में खिलाडी खेल रहे होते है दूसरी साइड में ये नचनियां [नचनियां नहीं समझते,, अब भैया अंग्रेजी में पता नही उन्हें क्या कहते है]बस दर्शको के मनोरंजन के लिए नाच रही होती है, यंहा का नजारा भी कुछ ऐसा ही था,बस थोड़ी प्रभु भक्ति थी और पहनावा थोडा सलीके का था,फिर भी मन थोडा सा भटक रहा था,अब करे भी तो क्या करे आखिर इंसान है ही गलतियों का पुतला,बढ़ी कोशिश की मन को रोकने की लेकिन नजर कभी कभार फिसलती रही,सारे मग्न हो गा नाच रहे थे,कुछ देर में एक बहुत सुन्दर नारी का आगवन हुआ तो प्रवचन कर्ता ने बताया की ये रुकमनी है और आज इनका विबाह किसी और से निशचित था लेकिन रुकमनी तन मन से भगवान् श्री कृष्ण जी को अपना पति मान चुकी है,और आज इन्होने कृष्ण जी को बुलाबा भेजा है की यंहा आओ और मुझे भगाकर ले जाओ मुझसे शादी कर लो नही तो मैं आत्मदाह कर लुंगी,प्रेम वश में कृष्ण जी ने रुकमनी जी का अपहरण किया और उनसे शादी की,इस वृतान्त के साथ साथ स्टेज पर साक्षात् श्री कृष्ण जी आते है और रुकमनी का हाथ पकड के उन्हें भगा ले जाते है, साक्षात् प्रभु जी के दर्शन पाकर हम तो धन्य हो गये ऐसा लग रहा था जेसे हम भी द्वारिका पूरी में बेठे हो,कथा के साथ ही स्टेज पर कृष्ण जी रुक्को को वरमाला पहनाते है बाकायदा ॐ मगलम भगवान् विष्णु आदि मंत्रो सहित दोनों की शादी होती है मंगल गान होता है और फिर कृष्ण जी के साथ रुकमनी दोनों आकर प्रवचन कर्ता के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेते है,जेसे की कन्यादान करने वाले पिता से वर वधु आशीर्वाद लेते है,,कथा तो बढ़ी आन्ददायक थी।बस थोडा सा रोष मन में पनप रहा था कुछ प्रश्न भी मन में आरहे थे की क्या कृष्ण रुकमनी बने लड़का लड़की सचमुच में शादी करेंगे,जिनकी शादी तो स्टेज पर पूरी हो चुकी थी,और क्या कथा के साथ लड़कियां नाचना जरुरी था बो भी एक स्पेशल स्टेज लगाकर,एक आम लड़का जो कृष्ण जी की वेशभूषा में था सभ श्रधालुओं ने और हमने भी उन्हें कृष्ण माना। उनके चरण स्पर्श किये क्या उन्हें प्रवचन कर्ता के चरण छूने चाहिए थे क्या भगवान् इतना छोटा हो गया है की वो एक आम इंसान के आगे शीश झुकाए।क्या कथा के साथ ये नोटंकी जरूरी थी,इससे अच्छा तो टीवी सीरियल ही होता है पहले ही साफ साफ लिखा होता है की सब पात्र और घटनाएं काल्पनिक है.फिर मन में आया की चलो छोडो मेरे प्रभु ने इसी हजारो लीलाए की है.शायद ये भी मेरे नटखट गोपाल की ही कोई लीला हो बस यही सोच हम बहा से हरे कृष्ण हरे कृष्ण करते घर आगये

Friday, June 4, 2010

ताज महल नहीं तेजोमहल, मकबरा नहीं शिवमन्दिर ।।


ताज महल नहीं तेजोमहल, मकबरा नहीं शिवमन्दिर ।।

बी.बी.सी. कहता है...........
ताजमहल...........
एक छुपा हुआ सत्य..........
कभी मत कहो कि.........
यह एक मकबरा है..........

प्रो.पी. एन. ओक. को छोड़ कर किसी ने कभी भी इस कथन को चुनौती नही दी कि........


"ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था"



प्रो.ओक. अपनी पुस्तक "TAJ MAHAL - THE TRUE STORY" द्वारा इस


बात में विश्वास रखते हैं कि,--


सारा विश्व इस धोखे में है कि खूबसूरत इमारत ताजमहल को मुग़ल बादशाह

शाहजहाँ ने बनवाया था.....

ओक कहते हैं कि......


ताजमहल प्रारम्भ से ही बेगम मुमताज का मकबरा न होकर,एक हिंदू प्राचीन शिव

मन्दिर है जिसे तब तेजो महालय कहा जाता था.

अपने अनुसंधान के दौरान ओक ने खोजा कि इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर

के महाराज जयसिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था और इस पर अपना कब्ज़ा कर
लिया था,,

=> शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी "ने अपने

"बादशाहनामा" में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000 से ज़्यादा
पृष्ठों मे लिखा है,,जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का
उल्लेख है कि, शाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बाद,
बुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था और इसके ०६
माह बाद,तारीख़ 15 ज़मदी-उल- अउवल दिन शुक्रवार,को अकबराबाद आगरा लाया
गया फ़िर उसे महाराजा जयसिंह से लिए गए,आगरा में स्थित एक असाधारण रूप से
सुंदर और शानदार भवन (इमारते आलीशान) मे पुनः दफनाया गया,लाहौरी के
अनुसार राजा जयसिंह अपने पुरखों कि इस आली मंजिल से बेहद प्यार करते थे
,पर बादशाह के दबाव मे वह इसे देने के लिए तैयार हो गए थे.

इस बात कि पुष्टि के लिए यहाँ ये बताना अत्यन्त आवश्यक है कि जयपुर के

पूर्व महाराज के गुप्त संग्रह में वे दोनो आदेश अभी तक रक्खे हुए हैं जो
शाहजहाँ द्वारा ताज भवन समर्पित करने के लिए राजा
जयसिंह को दिए गए थे.......

=> यह सभी जानते हैं कि मुस्लिम शासकों के समय प्रायः मृत दरबारियों और

राजघरानों के लोगों को दफनाने के लिए, छीनकर कब्जे में लिए गए मंदिरों और
भवनों का प्रयोग किया जाता था ,

उदाहरनार्थ हुमायूँ, अकबर, एतमाउददौला और सफदर जंग ऐसे ही भवनों मे

दफनाये गए हैं ....

=> प्रो. ओक कि खोज ताजमहल के नाम से प्रारम्भ होती है---------


=> "महल" शब्द, अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में

भवनों के लिए प्रयोग नही किया जाता...

यहाँ यह व्याख्या करना कि महल शब्द मुमताज महल से लिया गया है......वह कम

से कम दो प्रकार से तर्कहीन है---------


पहला -----शाहजहाँ कि पत्नी का नाम मुमताज महल कभी नही था,,,बल्कि उसका

नाम मुमताज-उल-ज़मानी था ...


और दूसरा-----किसी भवन का नामकरण किसी महिला के नाम के आधार पर रखने के

लिए केवल अन्तिम आधे भाग (ताज)का ही प्रयोग किया जाए और प्रथम अर्ध भाग
(मुम) को छोड़ दिया जाए,,,यह समझ से परे है...

प्रो.ओक दावा करते हैं कि,ताजमहल नाम तेजो महालय (भगवान शिव का महल) का

बिगड़ा हुआ संस्करण है, साथ ही साथ ओक कहते हैं कि----

मुमताज और शाहजहाँ कि प्रेम कहानी,चापलूस इतिहासकारों की भयंकर भूल और

लापरवाह पुरातत्वविदों की सफ़ाई से स्वयं गढ़ी गई कोरी अफवाह मात्र है
क्योंकि शाहजहाँ के समय का कम से कम एक शासकीय अभिलेख इस प्रेम कहानी की
पुष्टि नही करता है.....

इसके अतिरिक्त बहुत से प्रमाण ओक के कथन का प्रत्यक्षतः समर्थन कर रहे हैं......

तेजो महालय (ताजमहल) मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान्
शिव को समर्पित था तथा आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था-----

==> न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के यमुना की तरफ़
के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1985 में यह सिद्ध किया
कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष
पुराना है...

==> मुमताज कि मृत्यु जिस वर्ष (1631) में हुई थी उसी वर्ष के अंग्रेज

भ्रमण कर्ता पीटर मुंडी का लेख भी इसका समर्थन करता है कि ताजमहल मुग़ल
बादशाह के पहले का एक अति महत्वपूर्ण भवन था......

==>यूरोपियन यात्री जॉन अल्बर्ट मैनडेल्स्लो ने सन् 1638 (मुमताज कि

मृत्यु के 07 साल बाद) में आगरा भ्रमण किया और इस शहर के सम्पूर्ण जीवन
वृत्तांत का वर्णन किया,,परन्तु उसने ताज के बनने का कोई भी सन्दर्भ नही
प्रस्तुत किया,जबकि भ्रांतियों मे यह कहा जाता है कि ताज का निर्माण
कार्य 1631 से 1651 तक जोर शोर से चल रहा था......

==> फ्रांसीसी यात्री फविक्स बर्निअर एम.डी. जो औरंगजेब द्वारा गद्दीनशीन

होने के समय भारत आया था और लगभग दस साल यहाँ रहा,के लिखित विवरण से पता
चलता है कि,औरंगजेब के शासन के समय यह झूठ फैलाया जाना शुरू किया गया कि
ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था.......

प्रो. ओक. बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी असंगताओं को इंगित करते

हैं जो इस विश्वास का समर्थन करते हैं कि,ताजमहल विशाल मकबरा न होकर
विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.......

आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं,जो आम जनता

की पहुँच से परे हैं

प्रो. ओक., जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक

संस्कारों के लिए भगवान् शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं
प्रयोग की जाती हैं.......

==> ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के

अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है,, यदि यह
सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी किभी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही
टपकाया जाता,जबकि
प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की
व्यवस्था की जाती है,फ़िर ताजमहल (मकबरे) में बूँद बूँद कर पानी टपकाने का क्या
मतलब....????

==> राजनीतिक भर्त्सना के डर से इंदिरा सरकार ने ओक की सभी पुस्तकें स्टोर्स से

वापस ले लीं थीं और इन पुस्तकों के प्रथम संस्करण को छापने वाले संपादकों को
भयंकर परिणाम भुगत लेने की धमकियां भी दी गईं थीं....

==> प्रो. पी. एन. ओक के अनुसंधान को ग़लत या सिद्ध करने का केवल एक ही रास्ता है

कि वर्तमान केन्द्र सरकार बंद कमरों को संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षण में
खुलवाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दे ....

ज़रा सोचिये....!!!!!!

कि यदि ओक का अनुसंधान पूर्णतयः सत्य है तो किसी देशी राजा के बनवाए गए
संगमरमरी आकर्षण वाले खूबसूरत, शानदार एवं विश्व के महान आश्चर्यों में से
एक भवन, "तेजो महालय" को बनवाने का श्रेय बाहर से आए मुग़ल बादशाह शाहजहाँ
को क्यों......?????

तथा......

इससे जुड़ी तमाम यादों का सम्बन्ध मुमताज-उल-ज़मानी से क्यों........???????


""""आंसू टपक रहे हैं, हवेली के बाम से.......


रूहें लिपट के रोटी हैं हर खासों आम से.......

अपनों ने बुना था हमें, कुदरत के काम से......

फ़िर भी यहाँ जिंदा हैं हम गैरों के नाम से......"""""

Girish Kamble
Research Associate
Mahyco Life Science Research Centre
Jalna-431203(MS)
इंडिया ये सब पढ़ कर तो एक लगा के ऐसा हो ही नही सकता लेकिन आनद जी के दावे देख कर इस बात से इनकार भी नही कर सकते, अगर ताज महल फिर दोवारा तेजो महालय[भगवान् शिव का मंदिर] हो जाये तो हम इतिहास बदलने में कामयाब हो जाते है,,करना कुछ खास नहीं बस अपने स्तर पे मोजूदा सरकार से छानबीन की प्रथना ही तो करनी है.आप सब से प्राथना है की हमारे साथ अपनी आवाज मिलाओ,,,वोट करो.....