Thursday, July 8, 2010
सिर्फ वही वख्त अच्छा था,
प्यारे भाईयो और उनकी बहनों जरा ध्यान दो.....
वो वख्त बढा अच्छा था, जब मैं छोटा सा बच्चा था, गोल गोल टोफिया खाता था, छोटी निक्कर पहनता था, उस समय पेट्रोल बढा सस्ता था, पर मेरे पास साइकल और कंधे पे बस्ता था,ना लडकियों का कोई जीकर था, मुझे बस अपनी पढाई का फिकर था, ना फेसबुक पर सटेट्स लिखता था, मेरे गत्ते पर हमेशा नीला मोर दीखता था,जब यारो की टोली मेरे साथ थी, तब वख्त ने बदली अपनी चाल थी, सकूल छोड़ गये हम कोलेज में, क्योंकि यारो जिन्दगी का सवाल था.अब टोलियों में रहना पढता है, सोरी थेंक यू कहना पढता है, फिर भी यार मेरे पूछते रहते है, तू क्यों खोया खोया रहता है, मैं जवाब नही दे पाता, बस चुप चाप रहता हूँ, फिर आंसू पोंछ के कहता हूँ,आप चलो मैं अभी आता हूँ,सब पूछते है वजह मेरे दिले ऐ सख्त की, मैं कहता हूँ यारो याद आ गयी फिर गुजरे वख्त की, जो वख्त बढा अच्छा था, जब मैं छोटा सा बच्चा था.
कोलेज से निकले नोकरी पे चले गये, यंहा भी वख्त की चाल थी, कुछ देर बाद शादी फिर बच्चे एक नया रंग वख्त ने दिखलाया. वही वस्ता कंधे पे लटका के मैं अपने ही बचपन को सकूल छोड़ने आया, लेकिन वो दौर बदल चूका था,ये वख्त ने ही हमें सिखलाया, क्या दिया हमने अपने इस बचपन को, ये देख कर तो सचमुच में रोना आया, अब सोचता हूँ सिर्फ वही वख्त अच्चा था, जब मैं छोटा सा बच्चा था.
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