Friday, June 18, 2010
बढ़ा कौन
वैसे मुझे ये तो नही पता की ये बात कितनी पुरानी है,लेकिन एक समय की बात है जब दूध और पानी आपस में लढ़ रहे थे,बहस का मुद्दा था की दोनों में बढ़ा कौन,है तो दोनों ही पक्के मित्र,बस छोटी सी बात को लेकर झगड़ा हो गया,,अब दोनों अपनी समस्या लेकर भगवान् जी के पास गये और दोनों ने अपना पक्ष उनके सामने रखा,भगवन जी भी परेशान हो गये सोचने लगे की दोनों ही अपनी जगह महान है, जब उन्हें कोई हल नजर नहीं आया तो उन्होंने दूध से पूछा की तुम ही बताओ तुम बढे केसे हुए.तो दूध ने अपना पक्ष रखा.प्रभु मैं बढ़ा हूँ क्योंकि मेरे बिना पानी की कोई ओकात नही है,पानी जब मुझमे मिल जाता है,तो मैं तो मैं ही रहता हूँ ये ख़त्म हो जाता है,और प्रभु जब मैं पानी में मिल जाऊ तब भी ये ख़त्म हो जाता है फिर बन जाती है कच्ची लस्सी वो भी मेरा ही अंग है,अब प्रभु जी पानी से पूछते है हाँ भाई है कोई जवाव दूध के प्रश्नों का,पानी कहता है प्रभु जी जब मैं इसमे मिला तब ही दूध बढ़ा हुआ पहले तो छोटा ही था,और जब कच्ची लस्सी की जरूरत थी तब भी मैं ही ज्यादा था ये तो थोडा सा था,फिर मैं ही बढ़ा हुआ,प्रभु जी बोले यार बात तो तुम्हारी भी जायज है,तो दूध भैया अब क्या बोलते हो,दूध बोला वैसे तो पानी ने पूरी यारी निभाई लेकिन जब मुझे उबाला गया तो इसने अपने छोटेपन का परिणाम दिया और हलके से सेंक से डर कर ये भाग गया ,प्रभु जी कुछ बोलते इससे पहले पानी बोल पढ़ा,प्रभुजी जब दूध को गर्म किया तो मैंने सारा सेंक अपने ऊपर ले लिया मैं तो जल कर भांप बनके ख़त्म हो गया लेकिन अपने यार को कुछ नहीं होने दिया वो तो दूध का दूध ही रहा न,बस इतना सुन कर प्रभु जी खढे हो बोले अरे भाईओ तुम दोनों की यारी के आगे तो मैं छोटा पद गया जाओ यार अपनी अपनी जगह तुम दोनों ही महान हो,,,,,,,,,,,
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acha kissa hai doodh or paani ka, itni achi post par koi comment na dekh kar main hairaan hu
ReplyDeleteहम कृष्ण भगवान् तो नहीं जो हर किसी का मन मोह लेते है,
ReplyDeleteहम तो छोटे से '' lovely ''' है जी जो श्रदा से मिला उसी में तसल्ली कर लेते है , wel thanku very for the comment,,,rajiv ji pata nahi knha so gye ,,,
हा हा हा
ReplyDeleteजाग गये प्रभु लवली जी !
हम तो बस व्यस्त हो गये थे. हनुमानजी की सुझाई समय-सारिणी का पालन तो अति आवश्यक था न !!
बेहद ही मजेदार कथा है यह दूध और पानी की. पहले कभी नहीं सुनी थी, पढ़कर आनन्द आया.
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त तर्क दोनों ने ही दिए. हम अगर न्यायाधीश होते तो भाग खड़े होते.
ऐसी ही एक मिलती-जुलती कथा शिव और विष्णु भगवान जी की भी है पर याद नहीं है.
धन्यबाद प्रभु बहुत देर वाद आशर्वाद दिया है ,लेकिन हम आपका आशीर्वाद पाकर धन्य हो गये,,
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