Saturday, November 19, 2022
पते की बात
आदिम युग की वृतियां हिंसा भय सम्भोग,
ज्यों की त्यो है आज तक सभ्य कहाँ हम लोग|
बर्षगांठ किस काम की सांसे घट गयी और,
एक साल फिर व्यर्थ में बना काल का गौर|
चार ग्रंथ क्या पद लिए बन गए संत महंत,
आधे अधूरे ज्ञान का अभिमन्यु सा हो अंत|
एक चोर ही कम नहीं करने को कंगाल,
पाँच पाँच जिस गेह में उसका कौन हवाल|
कितना श्रेय बटोर ले कितनी भी जमा लो धाक,
मूल रूप में वीर्य था अंत रूप में है ख़ाक|
कालजयी है ऊर्जा [ राम ] मृत्युंजय है सर्वेश,
शेष अनश्वर कुछ नहीं कहे फ़कीर नरेश|
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